जो भी मिले उल्लू बनते जाईये…
हर ठग को अपना आदर्श मानते जाईये।
शर्म हया को रखो ताक में ,
उल्लू बनने की कला सीखते जाईये।
शान से चांदी का जूता पहन कर ,
जिस का सर मिले उससे बजाते जाइये।
किसी को ठग ने में क्या जाता है ??
इंसान ही तो इंसान के काम आता है,
मुर्ख को मुर्ख बनाना में क्या घबराना
इसे अपना धर्मं मान का आगे बदते जाईये।
अपनी गीरेबा में झाकना बंद करो यार,
नहीं तो ख़ुद से आँख मिलाना मुश्किल हो जाएगा।
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aakhiri do linon ko bhi usi lay main rakhti jismain baaki sabhi line hain to achchha rahataa. ye to wo baat ho gai ki aagaaz to achchha tha magar anzaam par kaaboo nahi rahaa.
ReplyDeletekripayaa proof ki galti bhi durust karien.
पोस्ट लिखना बन्द क्यो कर दिया?
ReplyDeletebahut achhaa,likhte rahiye,subhkamnaye.
ReplyDeleteबहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाईबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
ReplyDeleteऔर बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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